खुशाली बाबा की कथा~Khushali baba ki katha/खुशहाली बाबा का मंदिर , फोटो
खुशहाली बाबा की कथा
आज से कई वर्ष पहले की बात है, उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के तहसील छाता के निकट एक छोटे से गाँव जलालपुर में बघेल वंश में विजय सिंह अपनी पत्नी धर्मवती के साथ रहते थे। ये बहुत ही सत्य कर्म पर चलने वाले सज्जन व् नेक व्यक्ति थे। गाँव में ही ये खेती का काम करते थे।
समय चलता गया कुछ समय बाद माता धर्मवती ने एक बहुत ही सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम जीवाराम रखा पुत्र दिन दिन बढ़ता गया ५ वर्ष बाद माता धर्मवती ने बहुत ही सुन्दर बेटी को जन्म दिया जिसका नाम ज्ञानवती रखा बेटी दिन दिन स्यानी होती गयी।खुशाली बाबा की जन्म कथा
समय जब ख़ुशी का आया माता ने अति तेजस्वी सुन्दर पुत्र को जन्म दिया विजय सिंह ने नामकरण संस्कार के लिए पंडित को बुलवाया। पंडित ने बालक का नाम खुशहाली रखा और बताया ये आपका पुत्र बहुत ही वैभवशाली है। इसकी घर घर में पूजा होगी।
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| खुशहाली शक्ति / हीरामणि शेष अवतार |
समय बीतता गया खुशहाली जब ७ वर्ष के हो जाते हैं। इनके पिता ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यालय में नाम लिखवाया, लेकिन इनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है। हर समय माँ दुर्गे की भक्ति, पूजा पाठ में मग्न रहते थे। जीवाराम के एक पुत्र का नाम हीरामणि था। खुशहाली हीरामणि एक दुसरे से बहुत अधिक प्रेम करते थे।
खुशाली बाबा का विवाह
खुशहाली का विवाह छाता गाँव से मुन्नीदेवी के साथ हुआ था। जो चाल चलन की नेक कुलवंती नारी थीं समय के साथ साथ इनके दो पुत्र हुए जिनका नाम लालाराम और तेजपाल था। इधर कलावती सुकुमारी विवाह योग्य हो जाती है जिनका विवाह भदावली में कर दिया जाता है।
हीरामणि की किशोर अवस्था हो जाती है परिवार वालों को उनके विवाह की चिंता होने लगी गाँव निधोई से इनका विवाह सुशीला कूमियां के साथ हो जाता है। कुछ समय बाद इनके यहाँ दो पुत्र और एक कन्या जन्म लेती है। कुछ समय बाद हीरामणि और खुशहाली सेना में भर्ती हो जाते हैं।
उस समय इन्होने हो रहे भयानक युद्ध में भाग लिया जब इनसे हिंसा न देखी गयी तब इन्होने फ़ौज से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देने के बाद फिर ये माँ की भक्ति मे लग गए माँ की कृपा कुछ ऐसी होती है, की इन्होने पैदल ही नगरकोट की झांकी करने की ठानी।
खुशाली बाबा का नगरकोट जाना
गाँव की पथवारी, चामड माता और धान्धू भगत को पूजने के बाद देवी परोसने के लिए चल देते हैं पैदल चलके जब ये कई दिनों बाद चिंतपूर्णी माता के दरबार में पहुँच जाते हैं। माता को पूजने के बाद जब ये ज्वाला जी पहुँच जाते हैं, और माता रानी का थाल सजाते हैं, थाल सजाकर माँ ज्वाला जी की पूजा अर्चना करते हैं।
फिर इसके बाद माँ नगरकोट वाली को पूजते हैं। माँ की पूजा अर्चना के बाद फिर ये जलालपुर के लिए पैदल ही चल देते हैं। वहां से लौटने के बाद कन्या लांगुरा करते हैं इस प्रकार इन्होने २१ बार पैदल ही माँ ज्वाला जी की झांकी की।
खुशहाली बाबा २१ वीं बार माँ ज्वाला की झांकी करने के लिए परिवार सहित पैदल ही जाते हैं। तभी रास्ते में इन्हें चोर मिल जाते हैं। चोर इनसे कहने लगे जो कुछ भी तुम्हारे पास सामान है, वो हमें देदो नहीं तो हम तुम्हारी पिटाई कर देंगे खुशहाली बाबा कहने लगे हमारे पास कोई ऐसा सामान नहीं है, जो तुम्हारे काम आये हमारे पास तो सिर्फ पूजा और खाने पीने का सामान है, लेकिन चोर नहीं मानते हैं, उनसे उनकी पोटली छीन लेते हैं।
लेकिन कुछ दूर चलने के बाद ही चोर अंधे हो जाते हैं। अंधे होने के बाद चोर जोर जोर से चिल्लाने लगे उनकी आवाज सुनकर ग्वाला वहां पहुँच जाते हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर ग्वाला उल्टे पाँव लौट जाते हैं, और हीरामणि और खुशहाली को चोरों के पास बुलाकर लाते हैं।
तब खुशाली बाबा माँ दुर्गे से विनती करने लगे हे माँ जगदम्बे ब्रह्मा विष्णु महेश द्वारा सुपूजित माते हमारी पुकार सुनो माँ अगर तू नहीं आयेगी हमारी पुकार नहीं सुनेगी अगर चोरों को सही नहीं करोगी तो हम इसी समय परिवार सहित प्राण गवां देंगे और तेरी झांकी नहीं करेंगे।
माँ दुर्गे की विनती करने के बाद ही चोर सही हो जाते हैं, और मां बाबा खुशहाली को दर्शन देती हैं। वरदान मांगने के लिए कहती हैं। बाबा ने कहा हे मां मैं किसी भी दुखिया के सर पर हाथ रखूं वह ठीक हो जाए। तभी मां ने कहा तथास्तु ऐसा कहकर मां अदृश्य हो जाती हैं।
बोलो दुर्गे मां की जय ...........
खुशहाली बाबा की जय..........
हीरामणि बाबा की जय............
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Jay ho khushali baba ki
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